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Rajasthan Class 4 Recruitment 2025: सफलता की कुंजी हैं राजस्थानी लोकोक्तियाँ एवं कहावतें

Published On: July 24, 2025
Rajasthan Class 4 Recruitment 2025: सफलता की कुंजी हैं राजस्थानी लोकोक्तियाँ एवं कहावतें
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राजस्थान चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी भर्ती 2025: सामान्य ज्ञान में महारत कैसे हासिल करें

Rajasthan Class 4 Recruitment 2025: राजस्थान में वर्ष 2025 सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए, विशेषकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी (Group D) पद के लिए, बेहतरीन अवसर लेकर आया है। राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड (RSSB) और राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा हजारों पदों पर भर्तियाँ आयोजित की जा रही हैं। इन प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता पाने के लिए सामान्य ज्ञान (GK) का खंड, और उसमें भी विशेष रूप से राजस्थानी संस्कृति, कला और भाषा का ज्ञान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

Rajasthan Class 4 Recruitment 2025: सफलता की कुंजी हैं राजस्थानी लोकोक्तियाँ एवं कहावतें
Rajasthan Class 4 Recruitment 2025: सफलता की कुंजी हैं राजस्थानी लोकोक्तियाँ एवं कहावतें

इन परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में राजस्थानी लोकोक्तियों (proverbs) और कहावतों (sayings) को एक विशेष स्थान दिया गया है। यह न केवल आपकी भाषा पर पकड़ को दर्शाता है, बल्कि राजस्थान की गहरी सामाजिक समझ का भी परिचायक है।

आइए, इस लेख में हम भर्ती प्रक्रिया को समझते हुए महत्वपूर्ण राजस्थानी लोकोक्तियों और कहावतों पर नजर डालें जो परीक्षा की दृष्टि से आपके लिए उपयोगी साबित होंगी।

परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण राजस्थानी लोकोक्तियाँ एवं कहावतें (अर्थ सहित)

नीचे दी गई लोकोक्तियाँ और कहावतें पिछली परीक्षाओं में पूछी जा चुकी हैं और आगामी परीक्षाओं के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

1. अकल बिना ऊंट उभाणा फिरै।

  • अर्थ: बुद्धि या विवेक के बिना व्यक्ति दिशाहीन होकर व्यर्थ में भटकता रहता है। मूर्ख व्यक्ति के लिए यह सटीक कहावत है।

2. बाप ना मारी पाडली, बेटा तीरंदाज।

  • अर्थ: पिता ने तो कभी छोटा-सा काम भी नहीं किया और बेटा खुद को बहुत बड़ा शूरवीर बता रहा है। यह उन लोगों पर व्यंग्य है जो बिना किसी योग्यता के डींगें हाँकते हैं।

3. घर में कोनी दाणा, अम्मा चली भुणाणा।

  • अर्थ: घर में अनाज का एक दाना भी नहीं है और अम्मा उसे भुनाने चली हैं। यह कहावत सामर्थ्य से अधिक दिखावा करने या अवास्तविक योजनाएं बनाने वालों पर कटाक्ष करती है।

4. कानी के ब्याव में सौ-सौ जोखिम।

  • अर्थ: एक तो पहले से ही कोई कमी या दोष है और उस पर भी कई तरह की मुसीबतें आ जाना। यह दर्शाता है कि एक समस्या अपने साथ कई और समस्याएँ लेकर आती है।

5. घी ढुल्यो तो म्हारै खिचड़ी में।

  • अर्थ: यदि घी गिर भी गया तो मेरी ही खिचड़ी में गिरा है। इसका भाव है कि हुए नुकसान का लाभ अंततः अपनों को ही मिलना।

6. उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई।

  • अर्थ: जब मान-सम्मान या शर्म ही नहीं बची, तो फिर किसी का क्या डर। यह निर्लज्ज व्यक्ति के लिए प्रयोग की जाती है।

7. अंधों में काणो राव।

  • अर्थ: मूर्खों के समूह में कम बुद्धिमान व्यक्ति भी राजा माना जाता है। यानी, अयोग्य लोगों के बीच कम अयोग्य व्यक्ति को ही श्रेष्ठ मान लिया जाता है।

8. तूँ ही राणी, मैं ही राणी, कुण भरै पांणी?

  • अर्थ: तुम भी रानी, मैं भी रानी, तो फिर पानी कौन भरेगा? यह कहावत तब कही जाती है जब किसी जिम्मेदारी वाले काम को हर कोई खुद को बड़ा समझकर टालता है।

9. बाईयां ना बसै गांव, अर मामा मांगै भात।

  • अर्थ: अभी तो गाँव बसा भी नहीं है और मामा भात (शादी का भोज) माँगने लगे। यह उन स्थितियों के लिए है जहाँ काम शुरू होने से पहले ही उसके परिणाम की उम्मीद की जाने लगती है।

10. ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना।

  • अर्थ: जब कोई कठिन कार्य हाथ में ले ही लिया है, तो आने वाली बाधाओं और मुश्किलों से घबराना व्यर्थ है।

11. भूखा बाणीया भात खावै।

  • अर्थ: भूखा बनिया भी चावल खा लेता है। इसका तात्पर्य है कि ज़रूरत या मज़बूरी पड़ने पर व्यक्ति अपने उसूलों और आदतों के विपरीत भी काम कर लेता है।

12. थोथो चणो, बाजै घणो।

  • अर्थ: अधजल गगरी छलकत जाए। जिस व्यक्ति में ज्ञान या गुण कम होते हैं, वह दिखावा अधिक करता है।

निष्कर्ष

संक्षेप में, राजस्थान में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में सरकारी नौकरी पाने का लक्ष्य रखने वाले अभ्यर्थियों के लिए यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण समय है।

Frequently Asked Questions (FAQs)


राजस्थानी बोलियों का वर्गीकरण क्या है?

राजस्थानी बोलियों को मोटे तौर पर पाँच प्रमुख उपभाषाओं में वर्गीकृत किया जा सकता है: मारवाड़ी, मेवाड़ी, ढूंढाड़ी, मालवी, और मेवाती. इनमें से प्रत्येक उपभाषा की अपनी उपबोलियाँ हैं, जो राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में बोली जाती हैं. 


राजस्थानी भाषा के जनक कौन थे?

सही उत्तर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन है। जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने पहली बार राजस्थान भाषा के लिए “राजस्थानी” शब्द का प्रयोग किया था। 1912 ई.

राजस्थानी में स्वागत कैसे करें?

राजस्थानी में “स्वागत” के लिए “खम्मा घणी” या “घणी खम्मा” कहा जाता है। “खम्मा घणी” का अर्थ है “बहुत-बहुत आशीर्वाद” या “सम्मान के साथ स्वागत है” यह मारवाड़ी भाषा में एक सामान्य अभिवादन है। 


बोलियों की संख्या कितनी है?

भारत में ‘भारतीय जनगणना 1961’ (संकेत चिह्न = जन0) के अनुसार 1652 मातृभाषाएँ (बोलियाँ) चार भाषा परिवारों में वर्गीकृत की गई हैं।

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